Wednesday 23 May 2018

हंगामा है क्यों बरपा


रोहिणी डीपीएस के प्रिंसिपल ने अंतःवस्त्रों को लेकर कुछ नियम बनाये हैं जिस पर खूब चर्चाएं हो रही हैं| चर्चा होनी भी चाहिए| चर्चाएं इसलिए जरुरी हैं क्योंकि तथकथित ''बेहयाई/ बेशर्मी'' वाले शब्द ब्रा, पैंटी और स्लीप या स्पैगटि शब्दों को जो ठिठोली में उड़ा दिये जाते हैं, उसकी परिकल्पना के बजाय उसके मायनों पर ध्यान हो| 
सबसे पहली बात स्कुल ने सिर्फ लड़कियों के लिए रूल नहीं लाये हैं| रूल लड़कों के लिए भी हैं| उन्हें भी सफ़ेद रंग की गंजी/बंडी अपने कमीज के नीचे पहनना है| हालाँकि हंगामा इस बात पर दिख नहीं रहा क्योंकि गंजी ना तो बेहयाई वाला शब्द है और ना इसे पहनने वाले '' my body my rule'' सूत्रधारक हैं|
एक घटना बताती हूँ| बात उस समय की है जब मैं 11 वी में थी| रांची का मौसम भी बेमौसम अचानक बरसात वाला अक्सर हो जाता है| असेम्बली की बेल बजी ही थी और झमाझम बारिश शुरू| कुछ बच्चे अभी स्कूल में एंटर ही कर रहे थे| एक लड़की जो शायद 9 की छात्रा लग रही थी, बैग को आगे अपने सीने से चिपकाये थोड़े तेज़ चाल से कॉरिडोर की ओर बढ़ रही थी| दौड़ी नहीं थी क्योंकि शायद फिसल कर गिरने का डर हो या अक्सर लड़कियों को दौड़ने की आदत नहीं होती|
लड़की पास आई तो समझ आया कि बारिश की वजह से उसकी शर्ट शरीर से बिलकुल चिपक गई थी उसने अंदर स्लिप नहीं पहना था तो पीठ साफ़-साफ़ झलक रहा था| लड़की थी न| बिना आईने में देखे समझ गई होगी कि अभी वो किस स्तिथि में लड़कों को दिख रही होगी!असहज होना स्वाभाविक था| हमारी प्रिंसिपल मैम भी वही बच्चों के साथ खड़ी थी और बातें कर रही थी| लड़की को देख लग रहा था कि अब रोइ की तब! प्रिंसिपल मैम तेज चाल से लड़की के पास पहुंची और अपना शॉल स्टाइल से उसके कंधे पर हाथ रख अपने ऑफिस की ओर बढ़ गई थी| हमारी मैम को सुषमा स्वराज मैम जैसे साड़ी पर शॉल या जैकेट पहनने की आदत थी|
इसके बाद जितनी लड़कियां थी उनके दिमाग में बिना फरमान जारी किये या समझाए ये बात समझ आ गई थी कि अंदर स्लीप पहनना ही पहनना है ऐसे किसी स्तिथि से थोड़ा ढंग से निपटने के लिए!
अगले हफ्ते मैम सीनियर सेक्शन की लड़कियों से मिली और आग्रह किया अंदर स्लीपप पहनने के लिए| हम सबने ये शिकायत भी की थी कि सीढ़ियों के नीचे लड़के खड़े होते हैं तो उतरते वक़्त बहुत असहजता लगती है| शायद वो स्कर्ट के नीचे झांकतने की कोशिश करते थे क्योंकि सीढ़ी की तरफ मुंडी करके खड़े होने से गणित का कोई सूत्र समझ आ जाएगा, ऐसा नहीं था| मैम ने कहा था राउंड्स लगाते वक्त और रिसेस में लड़के वहां खड़े नहीं होंगे ये तो गारंटी है पर दिन-भर सीढ़ियों के पास पहरेदारी पर किसी को बैठाना लड़को के मन में यौन आकर्षण तो पैदा करती ही फिर नये-नये तरीके ढूंढे जाते लड़कियों के अंदर झाँकने के! मनोविज्ञान के हिसाब से बिलकुल दुरुस्त बात थी| मैम ने स्कर्ट के नीचे टाईटस पहनने के लिए भी कहा था क्योंकि दौड़ने-उछलते समय भी निःसंकोच हो हम खेल-भाग सके| शायद उनके अनुभवी आँखों ने भांप लिया था कि लड़कियां कपडे सम्हालने के चक्कर में खेल पर ध्यान नहीं देती|
इसके बाद लड़कों के साथ भी एक सेशन हुआ था जिसमें क्या बात हुई ये लड़के ही जानते हैं|
विद्यालय में अंदर सफ़ेद गंजी या स्किन कोलोर की ब्रा और सफ़ेद स्लीप की अनिवार्यता कुछ नहीं बस इस स्थान की गरिमा बनाये रखने और असहज स्तिथियों से बचने के उपाय भर हैं|ऑफिस , स्कूल,कॉलेज या अन्य किसी ऐसे स्थान के अलावा लड़के बिना गंजी के शर्ट पहने या लड़कियां लाल ब्रा के ऊपर नीली टी-शर्ट! आप सहज हैं तो बिलकुल पहनिए! बीएस अपने कपड़ों को आत्म-विश्वास से carry करना जरुरी होता है|याद रखिये कुछ स्थान पर मर्यादा और उम्र के अनुसार काम करना ही सही होता है|

Monday 18 September 2017

​​बच्चे और आप

 
अगर आप सुबह किसी भी चैनल पर न्यूज़ देखते हैं तो टॉप 50 या टॉप 100 या ख़बरें फटाफट पर कभी गौर किया है? इन टॉप न्यूज़ में 3-4 न्यूज़ बलात्कार की होती है| इसमें 1-2 नाबालिगों के साथ हो रहे बलात्कार की होती है| ये नाबालिग मतलब 15 साल से कम आयु! लगभग सारे बलात्कारी जान पहचान के होते हैं| इनमें स्कूल,पड़ोसी  रिश्तेदार और अपने सगे बाप भाई चाचा भी होते हैं|
आइये ज़रा आज के समाचार पर भी नज़र डाल लेते हैं|
एक 8 साल की लड़की के साथ पड़ोसी ने किया और दूसरे शायद 6 साल की बच्ची का स्कूल के दो टीचर्स ने बलात्कार किया|
७० वर्षीया माँ का ४५ वर्षीय बेटा २ साल तक बलात्कार करता रहा| 
गरिमा कहां बची है? आँख का पानी कहां है? माफ़ कीजियेगा संस्कृति और सभ्यता की रक्षा वैलेंटाइन डे बंद करवा के होगा क्या?
खैर ये बिलकुल अलग बहस है और इस पर कभी और चर्चा करेंगे| मगर बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? आज भी कहती हूँ अभिवावक के तौर पर आपकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है| क्या स्कूल में आज क्या पढ़ाई हुआ इसके अलावा भी आप अपने बच्चे से कुछ और बात करते हैं? जितनी शिद्दत से उनकी कॉपियां देखते हैं क्या उतने ही लगन से बच्चे के शरीर और बर्ताव पर ध्यान देते हैं? बच्चों के मार्क्स से ज्यादा क्या किसी और बात की चिंता लगती है? प्रद्युमन जैसे हादसे अचानक होते हैं और शायद ऐसे हादसों पर उतना बस नहीं चलता|  फिर भी अगर किसी माँ बाप ने बच्चों से पूछा होता न कि वे टॉयलेट में अकेले जाते हैं या और कौन जाता है तो शायद ये बात पहले पता चल जाता कि बच्चों के टॉयलेट टीचिंग या नॉन टीचिंग स्टाफ भी उपयोग में लाते हैं और शायद ये हादसा नहीं होता|  रयान स्कूल हादसे के बाद जो सबसे पहली बात मेरे दिमाग में आई थी कि मेरी माँ ने मुझसे कहा था कि टॉयलेट अकेले कभी मत जाना|  किसी को साथ लेकर जाना|  मुझे समझ नहीं आता था और बात दिमाग से निकल भी गयी थी| पर उस दिन समझ आया और अपनी माँ पर गर्व हुआ था कि वो वाकई हर संभावनाओं के लिए अपने बच्चों को तैयार कर रही थी|
आपने रेयान स्कूल पर हो रही माता पिता की चर्चा को भी क्या ध्यान से सुन रहे हैं? बात शुरू कैसे हुई थी ? 45 हज़ार 3 महीने का देते हैं तब भी सुरक्षित नहीं है बच्चे! give me a break seriously! तो क्या 500 रूपये महीने देने वाले माता पिता के बच्चों के साथ ऐसा हो तो यह विषय इतने पुरजोर ढंग से नहीं उठना चाहिए?
दिल पर हाथ रख कर सच बताईयेगा अगर वो शहर दिल्ली ना होता,अगर वो स्कूल इतना महंगा न होता अगर बेदर्दी से हत्या की बजाय सिर्फ शारीरिक या कोई यौन दुराचार होता तो भी क्या आज 10 दिनों तक चर्चा हो रही होती ?
स्कूल का फेलियर है और कई स्कूलों में बहुत कुछ नहीं होता है| मगर ये रोज़ हो रहे हादसों के लिए क्या सिर्फ समाज के विभिन्न घटक ही जिम्मेदार हैं?
और ये समाज है क्या? हम और आप ही है न? फिर चूक किससे हो रही और फिर माफ़ कीजिये ये चूक क्या वर्तमान पीढ़ी का खोट है या फिर कई पीढ़ियों से चले आ रहे ''असंवेदनशील मगर तथाकथित संस्कारी'' मानसिकता का फल है?
बच्चों के प्रति,समाज के प्रति और सबसे बड़ी बात अपने आप के प्रति सही मायनों में जिम्मेदार बनिये| गुड टच बैड टच तो सबसे पहले सिखाना है उसके बाद भी आपको बहुत कुछ करना है:
क्या करें-
१. बच्चों से बात करते रहना सबसे जरुरी है|  इस बात के दायरे को बढ़ाइए|  बच्चा आपका है| उसकी चुप्पी, गुस्से, चिड़चिड़ापन को समझिये| कई मामलों में बस उसे नकचढ़ा या जिद्दी मानकर बात किया ही नहीं जाता| ये गलत है|
२. बच्चों को अगर डॉक्टर के पास ले जा रहे तो चेक अप के दौरान स्वयं साथ रहे|
३. बच्चा पार्क में खेलने जाता है तो आप भी साथ रहे| 7-8 साल तक के   बच्चों के साथ रहना तो बहुत जरुरी है|  इसके बाद बच्चे थोड़े समझदार हो जाते हैं|
४. प्ले स्कूल में बच्चों को भेजते हुए या घर में कोई केयर टेकर है तो बच्चों को विशेष रूप से तैयार करें| किसी ऐसे प्ले में तो कभी मत भेजें जो महल्ले के ८-१० बच्चों को इकठ्ठा करके अपने घर के ही किसी कमरे में प्ले स्कूल चलाते हो| घर में कोई केयर टेकर है तो cctv इंस्टाल्ड रखें| पुलिस वेरिफिकेशन और साइको एनालिसिस के बाद ही किसी को यह जिम्मेदारी दें|
५. बच्चा कहीं बाहर ट्यूशन पढ़ते जाता है तो ख्याल रखें वो किसी दोस्त के साथ ही रहे तो बेहतर|  किसी भी सूरत में ट्यूशन के तय समय से पहले या बाद तक बच्चे को मत रहने दे|  कभी एक्स्ट्रा सवाल या क्लास की बात हो तो उस समय स्वयं जाए|
६. घर में ही कोई शिक्षक पढ़ाने आता है तो आप खुद कमरे में चक्कर लगाते रहें|
७. बच्चों का विश्वास जीतिए|  उन्हें भरोसा होना चाहिए कि वो कुछ भी बोलेंगे तो आप उन पर विश्वास करेंगे|
८. लड़का और लड़की दोनों के शरीर के अंगों की जानकारी दें| बढ़ते उम्र के साथ हो रहे शरीर में बदलाव की भी जानकारी दे| बेहतर यही है कि लड़का हो या लड़की  उसे दोनों के बारे में बताएं|
९. किसी के डराने, धमकाने या पुचकारने के कब और क्या मतलब हो सकते हैं ये आप बेहतर समझते हैं तो आप ही अपने बच्चों को बेहतर बता सकते हैं|
१०.स्कूल या खेल के मैदान के किसी भाग में बच्चे अकेले ना जाए| विषेशकर बाथरूम में|
११. पड़ोसियों और रिश्तेदारों पर भी बराबर नज़र टिकाये रखें| ऐसा करते वक्त ये ना सोचे कि आप उन पर शक कर रहें या आप अपने ही रिश्तेदार या करीबी  पर भरोसा नहीं करके आप  अपराध कर रहे हैं|  आप बस अपने बच्चों के लिए एहतियात बरत रहे हैं|
१२. यौन अपराध के शिकार सिर्फ बच्चियां नहीं होती| बच्चे भी होते हैं| इसलिए उन्हें भी तैयार करें और नज़र रखें|
१३. बच्चों को बताये कि कोई ऐसा सीक्रेट नहीं होता जो माँ बाप को बताया नहीं जाता| कोई ऐसा खेल नहीं होता जिसमें प्राइवेट पार्ट्स के साथ खेला जाए| कई बार खेल और सीक्रेट के नाम पर दोषी के सालों महीनों तक शोषण करता रह जाता है|

रिश्ते शर्मसार हो रहे हैं|  इनकी गरिमा तभी बचेगी जब आप स्त्री और बच्चों की गरिमा तथा बातों को महत्व देंगे|  जब तक नहीं देंगे तब तक यही होगा और तीबारा माफ़ कीजियेगा - ये तो अभी शुरुआत है|  नहीं सुधरे, सोच-विचार नहीं बदले तो मनुष्य बहुत जल्दी सामाजिक प्राणी होगा|
स्वाति